दिल-ए-मुर्तजा बन जाए , होगी इख़्तियार तेरे आरजू की

तेरे दरबार में सजदा जु , मुझे तो आरज़ू तेरे गुफ्तगू की

न ख्याल तर हु, न गुमशुदा हु अफाक ए महफ़िल से

तेरी इबादत में , हा तलब बस मुझे तेरी जुस्तजू की